cure for all disease || मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् || Mritasanjeevani Stotram

cure for all disease || मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् || Mritasanjeevani Stotram

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मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्


एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं ।मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा  ॥1॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में पहला श्लोक

गौरी पति,मृत्यु को जीतने वाले  भगवान शंकर कि अराधना कर के, मृतसंजीवनी नाम के कवच का नित्य पाठ करना चाहिए॥1॥


सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं । महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ 2॥ 

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में  दूसरा श्लोक

महादेव शंकर जी का मृतसञ्जीवन नाम का कवच सार का भी सार,पुण्य देने वाला ,गुप्त से भी गुप्त और शुभ फल प्रदान करने वाला है ॥2॥



समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं । शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥3॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तीसरा श्लोक

इस शुभ कवच को एकाग्रचित होकर सुनना चाहिए | इस दिव्य कवच को सुनने मात्र से रहस्य उजागर होते हैं ॥3॥



वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः । मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥4॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में चौथा श्लोक

जो अभय दान देने वाले हैं,सभी देवताओं द्वारा पूजे जाने वाले हैं वह मृत्यु पर जय करने वाले महादेव पूर्व दिशा में मेरी रक्षा करें ॥4॥



दधानः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः ।सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥5॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में  पाँचवाँ श्लोक

शक्ति को धारण करने वाले ,तीन मुखों वाले,छ: भुजाओं वाले प्रभु | अग्निरूपी भगवान शंकर आग्नेय कोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥5॥



अष्टदसभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः । यमरूपि महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ॥6॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में छठा श्लोक

अट्ठारह भुजाओं वाले, हाथ में दण्ड धारण कर सृष्टि को अभय करने वाले,  यमरुपी महादेव दक्षिण-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥6॥



खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः । रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदावतु ॥7॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सातवाँ श्लोक

हाथ में खड्ग धारण करने वाले , अभय देने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों द्वारा पूजे जाने वाले ,रक्षा रूप महेश नैर्ऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥7॥




पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः । वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदावतु     ॥8॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में आठवाँ श्लोक

हाथ में अभय मुद्रा और पाश धारण करने वाले, सभी रत्नों से सुशोभित , वरुण स्वरूप महादेव  पश्चिम- दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥8॥



गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः । वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥9॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में नवमाँ श्लोक

हाथों में गदा और अभय मुद्रा धारण करने वाले, प्राणों कि रक्षा करने वाले, सर्वदा गतिशील | वायुस्वरूप शंकर वायव्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥9॥


शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः । सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥10॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में दसवाँ श्लोक

हाथों में शंख और अभय मुद्रा धारण करने वाले |  कण कण में व्याप्त भगवान् शंकर सभी दिशाओं  में मेरी रक्षा करें      ॥10॥


शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधिनायकः । ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः   ॥11॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में ग्यारहवाँ श्लोक

हाथों में शूल और अभय मुद्रा धारण करने वाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशान स्वरूप शंकर ईशान कोण में मेरी रक्षा करें ॥11॥


ऊर्ध्वभागे  ब्रह्म:रूपी विश्वात्माऽधः सदावतु । शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः॥12॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में वारहवाँ श्लोक

ब्रह्मरूपी शंकर भगवान मेरी ऊर्ध्वभाग में तथा विश्वात्मस्वरूप भगवान अधोभाग में मेरी सदा रक्षा करें । शंकर मेरे सिर की और चादँ को ललाट मैं धारण करने वाले शंकर मेरे ललाट की रक्षा करें ॥12॥


भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु । भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः    ॥13॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तेरहवाँ श्लोक

सर्व लोकेश,त्रिनेत्र शंकर मेरे नेत्रों और भौहों के बीच कि सदा रक्षा करें,गिरीश मेरी दोनों भौंहों की रक्षा  एवं महेश्वर मेरे दोनों कानों कि रक्षा करें ॥13॥



नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः । जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ॥14॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में चौदहवाँ श्लोक

मेरी नासिका कि महादेव तथा वृषभध्वज मेरे दोनों होठों की  रक्षा करें । दक्षिणामूर्ति मेरी जीभ कि तथा गिरिश (पर्वत पर रहने वाले ) मेरे दाँतों की रक्षा करें ॥14॥



मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः । पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ॥15॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में पँद्रहवाँ श्लोक

मृत्यु को जीतने वाले शंकर मेरे मुँह की एवं नागों कि माला धारण करने वाले  भगवान् शिव मेरे कण्ठ की रक्षा करें । पिनाकी मेरे दोनों हाथों की तथा त्रिशूली मेरे हृदय की सदा रक्षा करें ॥15॥



पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः । नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥16॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सोलहवाँ श्लोक


पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनो कि और जगत के ईश्वर  मेरे उदर की सदा रक्षा करें । विरूपाक्ष मेरे नाभि क्षेत्र कि और  पार्वती पति मेरेव पार्श्व भाग की सदा रक्षा करें    ॥16॥



कटद्वयं गिरीशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः । गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः       ॥17॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सतरहवाँ श्लोक

गिरीश मेरे नित्म्बों कि तथा प्रमथाधिप मेरे पीछे के भाग कि सदा रक्षा करें । महेश्वर मेरे गुदा भाग कि और भैरव मेरी दोनों जंघाओं कि रक्षा करें ॥17॥



जानुनी मे जगद्दर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका । पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥18॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में अठारहवाँ श्लोक

जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरीे दोनों जँघाओं कि | सभी लोकों में वंदित सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरों की सदा रक्षा करें ॥18॥



गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम । मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥19॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में उन्नीसवाँ श्लोक


गिरीश मेरी अर्धाँगिनी कि  तथा भव मेरे पुत्रों कि सदा रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरी आयु कि गणनायक मेरे चित्त कि सदा रक्षा करें ॥19॥


सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः। एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम्     ॥20॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में वीसवाँ श्लोक

कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अंगो की रक्षा करें । यह दिव्य कवच देवताओं के लिये भी दुर्लभ है॥20॥



मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् । सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥21॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में इक्कीसवाँ श्लोक

मृतसञ्जीवन नामक इस कवच की कीर्ति महादेव जी ने गाई है । इस कवच के सहस्त्र वार जाप  को पुरश्चरण कहा गया है ॥21॥



यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः । सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥22॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में बाईसवाँ श्लोक

जो इस कवच को नित्य ध्यानपूर्वक पढ़ता या सुनता  है, उसे  अकाल मृत्यु नहीं आती और वह पूरी  आयु प्राप्त करता है  ॥ 22॥


हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ । आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥23॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तेईसवाँ श्लोक

इस कवच का पाठ करने वाला यदि मरणासन्न व्यक्ति को भी छू देता है तो वह भी जीवित हो उठता है   । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥23॥



कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा । अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः      ॥24॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में चोबीसवाँ श्लोक

यह मृतसञ्जीवन कवच काल के हाथ में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर ‍देता है | वह अणिमा आदि गुणों से युक्त ऐश्वर्य को प्राप्त कर मानवों में उत्तम होता है ॥24॥



युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं । युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते   ॥25॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में पच्चीसवाँ श्लोक

युद्ध आरम्भ होने से पहले जो अट्ठाइस वार इस कवच का पाठ करता है वह शत्रु के लिए अदृश्य हो जाता है अर्थात शत्रु उसे मार नहीं सकता ॥25॥



न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै । विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा     ॥26॥ 

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में छब्बीसवाँ श्लोक

ब्रह्मास्त्र जैसे शस्त्र भी उस का कुछ बिगाड़ नहीं सकते और यूद्ध में सदा उस की जीत होती है॥26॥


प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं । अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च    ॥27॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सत्ताईसवाँ श्लोक

जो सुबह  उठकर इस कल्याणकारी कवच का सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय्य सुख प्राप्त होते हैं ॥27॥


सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः । अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः   ॥28॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में अट्ठाईसवाँ श्लोक

वह सभी रोगों से मुक्त हो कर ,अजर अमर हो एक अट्ठारह साल के युवा कि तरह हो जाता है ॥28॥


विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् । तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥29॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में उन्नतीसवाँ श्लोक

वह सभी लोकों में घूमता हुआ दुलर्भ भोगों को प्राप्त करता है | इसी कारण इस कवच को मृतसंजीवनी कहा गया है   ॥29॥



मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम्     ॥30॥

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तीसवाँ श्लोक

मृतसंजीवनी नाम का यह कवच  देवतओं के लिय भी दुर्लभ है ॥30॥


॥ इति वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥


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